सुनो कुछ दूर और साथ निभा लो पास ही किनारा है... सुनो कुछ दूर और साथ निभा लो पास ही किनारा है...
वो भी अश्कों को बाँध मंच से वापस चला गया और लोग भी हीर रांझा में खो गए.... वो भी अश्कों को बाँध मंच से वापस चला गया और लोग भी हीर रांझा में खो गए....
तमाम ख़त जो उसने कभी मुझे लिखे वो कोरे के कोरे ही रहते थे.. तमाम ख़त जो उसने कभी मुझे लिखे वो कोरे के कोरे ही रहते थे..
एक ग़ज़ल...। एक ग़ज़ल...।
ऐसा नहीं ज़ख़्म हमने नहीं खाये हैं यह तीर हमने अपनों से ही खाये हैं... ऐसा नहीं ज़ख़्म हमने नहीं खाये हैं यह तीर हमने अपनों से ही खाये हैं...
नजरें मिला के मासूम वो मुस्कुरा रहे हैं, तकमिल हो गये हों सब अपने ख्वाब जैसे। नजरें मिला के मासूम वो मुस्कुरा रहे हैं, तकमिल हो गये हों सब अपने ख्वाब जैसे।